शादी होते ही पति के सरनेम को अपना लेने वाली करीना और सोनम हों या स्त्रियों को ‘वाइब्रेटर’ की ताकत का एहसास कराने वाली स्वरा भास्कर हों, इन सब स्वघोषित नारीवादियों के नकली नारीवाद के दौर में मुझे हिंदी सिनेमा में काजोल स्त्री-सामर्थ्य का सबसे सशक्त नाम लगती हैं. अजय देवगन जैसा सुपरस्टार पति लेकिन उसके प्रभाव से पूर्णतः मुक्त काजोल का हर प्रकार से अपना स्वतंत्र अस्तित्व है. शादी के वर्षों बाद भी पति के सरनेम का प्रभाव उनके नाम पर नहीं पड़ा है. आज भी फिल्मों में उनका नाम ‘काजोल’ ही आता है, काजोल देवगन नहीं. बात केवल सरनेम की ही नहीं है, बात पूरे व्यक्तित्व की है और काजोल का पूरा व्यक्तित्व ही उनकी सशक्तता को प्रतिबिंबित करता है.
काजोल की करण जौहर और शाहरुख खान से जितनी घनिष्ठता है, अजय की उतनी ही दूरी रही है. लेकिन इसका भी काजोल पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा अबतक. ‘शिवाय’ और ‘ऐ दिल है मुश्किल’ फिल्मों के दौरान हुए विवाद में जरूर काजोल और करण जौहर के संबंधों में थोड़ी खटास आई थी, लेकिन वो भी अधिक समय तक नहीं रही और अब दोनों पूर्ववत ढंग से अच्छे मित्र हैं बल्कि अब तो अजय देवगन और करण जौहर के बीच भी निकटता देखने को मिलने लगी है. ‘सूर्यवंशी’ फिल्म के ट्रेलर लॉन्च के दौरान दोनों एक मंच पर नजर आए थे.
बहरहाल, काजोल की पारिवारिक पृष्ठभूमि सिनेमा जगत की ही रही है. नानी शोभना समर्थ से लेकर हिंदी सिनेमा की लोकप्रिय अभिनेत्री मां तनूजा और निर्माता-निर्देशक पिता शोमू मुखर्जी के बीच काजोल का बचपन गुजरा. ऐसी समृद्ध सिनेमाई पृष्ठभूमि के बावजूद वे फिल्मों में नहीं आना चाहती थीं. उन्हें फिल्मों से ऊब होती थी. एक साक्षात्कार में उन्होंने खुद बताया है, ‘दुर्घटनावश एक्ट्रेस बन गई. मेरी बहन को फिल्मों में आना था. उसके साथ फोटोशूट पर जाया करती थी. मां ने कहा कि वहां उसके साथ हो तुम भी फोटोज करा लो.’
बस इस फोटोशूट के बाद उन्हें राहुल रवैल की फिल्म ‘बेख़ुदी’ मिल गई. 1992 में यह फिल्म रिलीज़ हुई और तब से अबतक सफलता के नए-नए सोपान गढ़ते हुए सिनेमा जगत में काजोल को आज लगभग तीस साल हो चुके हैं. इन तीस सालों में उन्होंने केवल बत्तीस फिल्मों में ही काम किया है जबकि उनके बाद आई अनेक अभिनेत्रियां इससे ज्यादा फिल्में कर चुकी हैं. काजोल के पांच साल बाद 1997 में राहुल रवैल की ही फिल्म ‘और प्यार हो गया’ से हिंदी सिनेमा में अपने करियर की शुरुआत करने वाली ऐश्वर्या राय बच्चन अबतक 31 फ़िल्में कर चुकी हैं.
1996 में ‘राजा की आएगी बारात’ से डेब्यू करने वाली काजोल की ही चचेरी बहन रानी मुखर्जी की फिल्मोंग्राफी में चालीस से अधिक फिल्में हैं. और तो और, साल 2000 में अपना करियर शुरू करने वाली करीना कपूर के खाते में तक 49 फिल्में हैं, लेकिन जानने की बात ये है कि फिल्मों की संख्या के मामले में काजोल से आगे दिख रहीं ये अभिनेत्रियां फिल्मों की सफलता के पैमाने पर उनसे काफी पीछे हैं. जब फिल्मों की सफलता को पैमाना बनाया जाता है, तो काजोल की अपेक्षाकृत छोटी फिल्मोग्राफी बहुत वजनदार हो जाती है. उनकी बत्तीस फिल्मों में से लगभग आधी फिल्में हिट, सुपर हिट और आल टाइम ब्लाकबस्टर तक रही हैं. उक्त किसी भी अभिनेत्री के हिस्से में ऐसी सफलता नहीं आई है. कारण यही है कि काजोल फिल्मों के मामले में काफी चयनित दृष्टिकोण रखती हैं. दूसरी चीज कि उनकी प्राथमिकता में उनका परिवार सबसे ऊपर है.
दिलचस्प यह भी है कि काजोल ने जो भी फिल्में की हैं, उनमें से अधिकांश में उनका किरदार बेहद मजबूत रहा है, वो चाहें ‘बाज़ीगर’ की प्रिया हो, ‘डीडीएलजे’ की सिमरन हो, गुप्त की ईशा हो, ‘कुछ कुछ होता है’ की अंजली हो, ‘हम आपके दिल में रहते हैं’ की मेघा हो, ‘प्यार तो होना ही था’ की संजना हो, ‘फना’ की जूनी हो अथवा अभी बीत वर्ष आई उनके होम प्रोडक्शन की फिल्म ‘तान्हाजी’ की सावित्री मालुसरे हो, यह सब किरदार ऐसे हैं जो दर्शकों के दिमाग पर अपनी बेहद गहरी छाप छोड़ चुके हैं.
काजोल के अभिनय की ख़ास बात ये है कि वे एक ही फिल्म में अभिनय के दो विपरीत शेड्स एक ही साथ बड़ी सहजता से निभा लेती हैं. डीडीएलजे का उदाहरण लें तो इसमें काजोल के किरदार में पारम्परिकता और आधुनिकता दोनों को दिखाया गया है. फिल्म में जो पारिवारिक दृश्य हैं, वहां काजोल एक पारंपरिक लड़की के किरदार में हैं और एकदम परफेक्ट लगती हैं, लेकिन वही काजोल जब योरोप घूमने जाती हैं, तो उनके किरदार में आधुनिकता का अंदाज भी नजर आने लगता है. कोई कह सकता है कि ये तो अभिनय की बड़ी बेसिक बात है, इसमें भला क्या खास है ? खास बात ये है कि जब वे पारंपरिक होती हैं, तब भी उनमें मौजूद आधुनिकता खत्म नहीं होती बल्कि किसी न किसी रूप में व्यक्त होती रहती है. इसी तरह जब वे आधुनिकता के रंग में होती हैं, तब पारंपरिकता का भाव भी कहीं न कहीं से दिखाई दे ही जाता है. इस तरह किसी किरदार को तभी निभाया जा सकता है, जब आप उसकी बारीकियों को समझें तथा उसमें रच-बस जाएं. ‘गुप्त’ की ईशा, ‘कुछ कुछ होता है’ की अंजली आदि किरदारों में भी काजोल के अभिनय का यह पक्ष बखूबी देखा जा सकता है.
व्यावसायिक दृष्टि से भी काजोल की सशक्तता के कई पहलू हैं. वे अपनी शर्तों पर काम करती हैं। कम किन्तु दमदार किरदारों वाली फिल्में ही करती हैं और लंबे अंतराल पर दिखने के बाद भी आज की सक्रिय हीरोइनों से कम लोकप्रिय नहीं हैं. सबसे बड़ी चीज यह कि उन्हें कोई निर्देशक कहानी की मांग के नाम पर भी अंतरंग दृश्य के लिए मजबूर नहीं कर सकता. उनकी बत्तीस फिल्मों में इक्का-दुक्का फ़िल्में ही होंगी, जिनमें काजोल ने हल्के-फुल्के अंतरंग दृश्य निभाए हों. अपने शानदार अभिनय के लिए काजोल को छः फिल्मफेयर अवार्ड मिल चुके हैं.
काजोल और अजय देवगन की जोड़ी हिंदी सिनेमा की लोकप्रिय जोड़ियों में से एक है. एकबार एक साक्षात्कार में अजय देवगन से पूछा गया कि, ‘आपको काजोल के बारे में सबसे अधिक सरप्राइजिंग बात क्या लगती है ?’ इसपर हंसते हुए अजय का जवाब था कि, ‘I am surprised that she is still with me.’ अजय ने ऐसा यूं ही नहीं कहा, तमाम लोग भी अक्सर इस जोड़ी के सफल वैवाहिक जीवन पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं, क्योंकि अजय और काजोल के व्यक्तित्व में काफी अंतर है. अजय जहां बेहद संजीदा और कम बोलने वाले इंसान हैं, वहीं काजोल का व्यक्तित्व चंचलता, वाचालता और शरारत से भरा हुआ है. लेकिन यह दोनों की परस्पर समझ ही है कि उनके रिश्ते में कभी किसी तरह की खटास नहीं आई. जब काजोल को फिल्म करनी होती है, तो अजय घर पर रहकर बच्चों को संभालते हैं. वहीं जब अजय बाहर होते हैं, तो यह काम काजोल भी करती हैं. कहना गलत नहीं होगा कि काजोल एक बेहतरीन अभिनेत्री तो हैं ही, एक शानदार पुत्री, पत्नी और मां भी हैं. इस आधार पर यह कहना गलत नहीं होगा कि इक्कसवीं सदी के हिंदी सिनेमा में काजोल स्त्री-सामर्थ्य का सबसे सशक्त उदाहरण हैं.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)