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deepfake why is it several hundred times more dangerous than fake news may also be a threat to democracy– News18 Hindi


नई दिल्ली. Fake News यानी झूठी व भ्रामक खबरों के बारे में तो आपने सुना होगा. खासतौर से चुनावों में इसकी बाढ़ आ जाती है. टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल हमारे जीवन में तेजी से बढ़ा है. जिस तरह इसके सकारात्मक परिणाम हैं वैसे ही इसके नकारात्मक और खतरनाक प्रभाव भी हैं. इसी कड़ी में  Deepfake भी एक बड़ी समस्या के रूप में हमारे सामने आई है.

पिछलों कुछ दिनों से Deepfake चर्चा में बना हुआ है. सोशल मीडिया में अक्सर इस तकनीक का इस्तेमाल करके कोई न कोई वीडियो वायरल होता रहता है. Deepfake से जुड़ा Reface ऐप या इस तरह के कई ऐप भी इन दिनों काफी पॉपुलर हैं. इस तरह के ऐप में आप अपनी या किसी दूसरे की फोटो या वीडियो डालते हैं. फिर ये ऐप फेशियल फ़ीचर्स को एनालाइज करके सेलिब्रिटी वीडियो के फ़ेस के साथ आपका फ़ेस स्वैप कर देता है. ये भी डीप फेक का ही एक उदाहरण है.

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लेकिन टेक्नोलॉजी के युग में इसे बेहद खतरनाक भी माना जा रहा है. इसका गलत इस्तेमाल इसे फेक न्यूज से हजारों गुना ज्यादा खतरनाक बना देता है. पोर्न वीडियो में भी इसका काफी इस्तेमाल किया जाता है. बराक ओबामा से लेकर टॉम क्रूज का वायरल वीडियो भी डीपफेक के इस्तेमाल से बनाया गया था.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पर आधारित डीप फेक
डीप फेक (Deep Fake) झूठी खबरों का कहीं अधिक विकसित और खतरनाक रूप है. यह दुष्प्रचार और अफवाहों को तेज़ी से फैलाने का नया विकल्प बनकर उभरा है. सामान्य झूठी खबरों को कई तरीके से जांचा जा सकता है वहीं डीप फेक को पहचान पाना किसी आम इंसान के लिए बेहद मुश्किल है.

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डीप फेक ‘डीप लर्निंग’ और ‘फेक’ का सम्मिश्रण है इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का प्रयोग कर किसी मीडिया फाइल जैसे चित्र, ऑडियो व वीडियो की नकली कॉपी तैयार की जाती है, जो वास्तविक फाइल की तरह ही दिखती हैं और आवाज करती है.

कैसे काम करता है?
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का प्रयोग कर किसी व्यक्ति द्वारा बोले गए शब्दों, शरीर की गतिविधि या अभिव्यक्ति को दूसरे व्यक्ति पर स्थानांतरित किया जाता है. Generative Adversarial Networks (GAN) का इस्तेमाल कर इसे और ‘विश्वसनीय’ बनाया जा सकता है. अधिकांश स्थितियों में यह पता करना बहुत ही कठिन हो जाता है कि दिखाया गया मीडिया असली है अथवा नकली. सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट ओपन सोर्स कम्युनिटी GitHub पर भारी मात्रा में ऐसे सॉफ्टवेयर्स पाए जाते हैं जो डीपफेक बना सकने में सक्षम हैं.

फ़िल्मों में भी Deepfake का इस्तेमाल
Deepfake काफ़ी समय से फ़िल्मों में यूज किया जाता रहा है. उदाहरण के तौर पर फ़ास्ट एंड फ्यूरियस ऐक्टर पॉल वॉटर की मौत के बाद उनकी फ़िल्म में पॉल वॉकर के भाई को रखा गया. लेकिन Deepfake के ज़रिए उनका चेहरा और आवाज़ बिल्कुल पॉल वॉकर की तरह कर दी गई. इससे पहले भी और आज भी फ़िल्मों में कई जगह पर Deepfake का उपयोग होता है, ख़ास तौर पर हॉलीवुड फ़िल्मों में इसका चलन ज़्यादा है.

डीप फेक से नुकसान
किसी भी तकनीक का गलत इस्तेमाल विनाशकारी साबित हो सकता है. डीपफेक तथा झूठी खबरें भी इसका एक उदाहरण हैं. इससे किसी व्यक्ति का राजनतिक, सामाजिक, आर्थिक जीवन बर्बाद किया जा सकता है. इसका, इस्तेमाल कई क्षेत्रों में खतरनाक साबित हो सकता है. खासतौर से चुनावों में इसके गलत इस्तेमाल की सबसे ज्यादा आशंका है. इसके माध्यम से किसी को बदनाम करने का प्रयास किया जा सकता है.

लोकतंत्र को खतरा
डीपफेक के इस्तेमाल से लोकतंत्र को अत्यधिक क्षति पहुंचाई जा सकती है. कल्पना कीजिए किसी चुनाव के दौरान उम्मीदवार का वीडियो जारी होता है जिसमें वो नफ़रती भाषण, नस्लीय टिप्पणी अथवा अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ कोई गलत बयान दे रहा हो, इस प्रकार चुनाव प्रक्रिया को आसानी से प्रभावित किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त डीप फेक का प्रयोग चुनाव परिणामों की अस्वीकार्यता या अन्य प्रकार की गलत सूचनाओं के लिए भी किया जा सकता है, जो एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती साबित होगा.

हालांकि विशेषज्ञ कहते हैं कि यह तो आपके इस्तेमाल का नजरिया तय करेगा कि तकनीक फायदेमंद होगी या खतरनाक. आग सबसे पुरानी तकनीक है. यह खाना भी पकाती है और लोगों को मारती भी है. असल समस्या तो गलत सूचनाएं हैं. कंप्यूटर या प्रिंट तो सिर्फ माध्यम हैं.

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Mr.Mario
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