(डॉ. रामेश्वर दयाल)
एक विशेष प्रकार की मिठाई मालपुआ (Malpua) के बारे में हम सभी जानते हैं. इसके बावजूद कई लोगों को यह समझ नहीं आता कि यह मालपुआ असल में है क्या. उसका कारण यह है कि इसके नाम के बल पर मन-मस्तिष्क में कोई मिठाई उभरकर ही नहीं आ पाएगी, बशर्ते आपने अगर मालपुआ खाया न हो. इस मिष्ठान्न के बारे में हम आपको इतना बता सकते हैं कि यह भगवान जगन्नाथ को चढ़ाए जाने वाले छप्पन भोगों में से एक हैं. इसका अर्थ तो यह हो गया कि मालपुआ भारत की प्राचीन मिठाइयों में से एक है. आपको एक और जानकारी देते चलें कि किसी स्त्री के सौंदर्य की तारीफ करने के लिए यह भी कहा जाता है कि उसके गाल तो मालपुए जैसे हैं.
किसी व्यक्ति की अमीरी के बारे में बताना हो तो यह भी कहा जाता है कि भाई, वह तो आजकल मालपुआ खा रहा है. अब इस मिठाई की इतनी तारीफ कर ही दी गई हे तो आज हम आपको देसी घी का बने और गाढ़ी चाशनी में लिपटे मालपुआ को खिलाने के लिए ले चलते हैं. जिस दुकान पर आपको लिए चल रहे हैं, वह भी बहुत पुरानी है और खास बात यह है कि उसका मालपुआ सबसे अधिक मशहूर है.
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मुंह में रखते ही मक्खन की तरह घुल जाता है मालपुआ
पुरानी दिल्ली का खारी बावली बाजार मसालों और ड्राइफ्रूट्स (किराना) के लिए मशहूर है. यहीं पर एक पुरानी हलवाई की दुकान है, जिसे ‘राम प्रसाद मक्खन लाल’ के नाम से जाना जाता है. लेकिन यह मशहूर मक्खनलाल हलवाई के नाम से है. यह दुकान इस बाजार से लगे नया बांस के मुहाने पर है. चूंकि यह पुरानी दिल्ली का पुराना हलवाई है तो दुकान पर मिष्ठान्न और नमकीन भी होंगे, लेकिन पूरी दिल्ली में इस दुकान का मालपुआ सबसे अधिक मशहूर है. आप इस दुकान पर सुबह से लेकर रात तक कभी भी पहुंचिए, आपको गरमा-गरम मालपुआ जरूर मिलेगा. खोया व अन्य सामग्री मिलाकर इसे देसी घी में तला जाता है और फिर इसे गाढ़ी चाशनी में तैरा दिया जाता है.
पेश करने से पहले मालपुआ पर पिस्ता-बादाम के मोटे चूरे को भुरका जाता है. आप एक बार गरमा-गरम, खुशबू उड़ाते हुए इस मालपुआ को खाकर तो देखिए. मुंह में डालते ही यह मक्खन की तरह घुलता जाता है. उसके बाद पता ही नहीं चलता कि मुंह में वह कहां गायब हो गया. यह मालपुआ 500 रुपये किलो मिलता है. रिटेल में मालपुआ खाना है तो दो की कीमत 36 रुपये है. मालपुआ के शौकीनों का कहना है कि कहीं भी इस मिठाई को खा लीजिए लेकिन इस दुकान की बात ही कुछ और है.
सूजी और मूंग की दाल का हलवा और नमकीन भी शानदार है
इस दुकान का देसी घी में तरबतर हलवा भी खासा मशहूर है. वह भी गरम ही मिलेगा. सूजी का हलवा खाना है तो वह 300 रुपये किलो है और मूंग की दाल के हलवे का आनंद उठाना है तो उसकी कीमत 500 रुपये किलो है. हलवे में इफरात में पड़ा देसी घी ही इसका स्वाद बढ़ाता है. इसे खाओगे तो एक बार लगेगा कि हाथों के अलावा कपड़ों में से भी देसी घी की खुशबू आने लगी है. इस दुकान पर बिकने वाली दो खास नमकीन आपका दिल मोह सकती है.
काजू मिक्सचर (680 रुपये किलो) व दालबीजी (560 रुपये किलो) स्वाद में अतुलनीय है. चूंकि यह पुरानी दिल्ली का हलवाई है तो नाश्ते की भी व्यवस्था होगी. इस इलाके में बेड़मी पूरी और आलू व छोले की सब्जी का नाश्ता खासा मशहूर है. इस दुकान पर यह नाश्ता दोपहर 2 बजे तक मिलता है. देसी घी में तरबतर इस नाश्ते की कीमत 80 रुपये प्लेट है.
80 साल पहले मक्खन लाल हलवाई ने शुरू की थी यह दुकान
पुरानी दिल्ली की तरह यह दुकान भी काफी पुरानी है. आजकल चौथी पीढ़ी इस दुकान को संभाल रही है. करीब 80 साल पहले (वर्ष 1940) में मक्खन लाल हलवाई ने यह दुकान खोली. बाद में इस काम को उनके बेटे जमना दास ने संभाला. हलवाई की यह दुकान उनके बेटे दिनेश कुमार से होते हुए उनके उनके बेटे सिद्धार्थ व हर्ष खंडेलवाल के जिम्मे आ चुकी है.
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उनका कहना है कि हमारे अपने सीक्रेट मसाले और अन्य सामग्री सालों पुरानी है. जिस कारण स्वाद में बदलाव नहीं आया है. पुराने लोगों से लेकर नई जेनरेशन में हमारी पहचान है. दुकान पर सुबह आठ बजे कामकाज शुरू हो जाता है और रात नौ बजे तक रहता है. नजदीकी मेट्रो स्टेशन चांदनी चौक मान सकते हैं, लेकिन वह भी दूर है. आपको रिक्शे या पैदल ही इस दुकान की मिठाइयों का स्वाद चखने के लिए आना होगा.
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