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- Dominos Data Breach Name, Address, Other Details Of Over 18 Crore Orders Leaked
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नई दिल्लीएक घंटा पहले
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पिज्जा खाने वाले उन यूजर्स के लिए बुरी खबर है जो डोमिनोज के ग्राहक हैं। दरअसल, डोमिनोज के 18 करोड़ यूजर्स के डेटा चोरी होने की बात सामने आई है। सिक्योरिटी एक्सपर्ट राजशेखर राजरिया के मुताबिक, इस डेटा में नाम, क्रेडिट कार्ड डिटले और एड्रेस जैसी अहम जानकारी शामिल हैं। यूजर्स के 13000 GB डेटा डीटेल डार्क वेब पर उपलब्ध हैं।
दूसरी तरफ, डोमिनोज इंडिया ने यूजर्स के डेटा लीक की खबरों का गलत बताया है। हालांकि, एक्सपर्ट की मानें तो यूजर्स को अपने क्रेडिट कार्ड का पिन बदल लेना चाहिए।
डेटा में GPS लोकेशन भी शामिल
राजरिया ने सोशल मीडिया पर बताया कि डोमिनोज पिज्जा के यूजर्स की डीटेल्स एक बार फिर लीक हो गई हैं। हैकर्स ने डार्क वेब पर एक सर्च इंजन बना दिया है, जिसमें डोमिनोज पिज्जा की 18 करोड़ डिलिवरी से जुड़ीं डीटेल्स दिख जाती हैं। इनमें नाम, ईमेल, फोन नंबर और GPS लोकेशन तक दिख रही हैं। डोमिनोज के ये यूजर्स भारत और दूसरे देशों के हो सकते हैं।
क्या होता है डार्क वेब?
इंटरनेट पर ऐसी कई वेबसाइट हैं जो ज्यादातर इस्तेमाल होने वाले गूगल, बिंग जैसे सर्च इंजन और सामान्य ब्राउजिंग के दायरे में नहीं आती। इन्हें डार्क नेट या डीप नेट कहा जाता है। इस तरह की वेबसाइट्स तक स्पेसिफिक ऑथराइजेशन प्रॉसेस, सॉफ्टवेयर और कॉन्फिग्रेशन के मदद से पहुंचा जा सकता है सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 देश में सभी प्रकार के प्रचलित साइबर अपराधों को संबोधित करने के लिए वैधानिक रूपरेखा प्रदान करता है। ऐसे अपराधों के नोटिस में आने पर कानून प्रवर्तन एजेंसियां इस कानून के अनुसार ही कार्रवाई करती हैं।
इंटरनेट एक्सेस के तीन पार्ट
1. सरफेस वेब : इस पार्ट का इस्तेमाल डेली किया जाता है। जैसे, गूगल या याहू जैसे सर्च इंजन पर की जाने वाली सर्चिंग से मिलने वाले रिजल्ट। ऐसी वेबसाइट सर्च इंजन द्वारा इंडेक्स की जाती है। इन तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।
2. डीप वेब : इन तक सर्च इंजन के रिजल्ट से नहीं पहुंचा जा सकता। डीप वेब के किसी डॉक्यूमेंट तक पहुंचने के लिए उसके URL एड्रेस पर जाकर लॉगइन करना होता है। जिसके लिए पासवर्ड और यूजर नेम का इस्तेमाल किया जाता है। इनमें अकाउंट, ब्लॉगिंग या अन्य वेबसाइट शामिल हैं।
3. डार्क वेब : ये इंटरनेट सर्चिंग का ही हिस्सा है, लेकिन इसे सामान्य रूप से सर्च इंजन पर नहीं ढूंढा जा सकता। इस तरह की साइट को खोलने के लिए विशेष तरह के ब्राउजर की जरूरत होती है, जिसे टोर कहते हैं। डार्क वेब की साइट को टोर एन्क्रिप्शन टूल की मदद से छुपा दिया जाता है। ऐसे में कोई यूजर्स इन तक गलत तरीके से पहुंचता है तो उसका डेटा चोरी होने का खतरा हो जाता है।
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