3 घंटे पहले
- कॉपी लिंक

केंद्रीय मंत्री और एक जमाने में टीवी एक्ट्रेस रहीं स्मृति ईरानी का दर्द छलका है। स्मृति ने कहा कि उन्होंने अपनी लाइफ में बहुत नजदीक से गरीबी देखी है। घर चलाने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर थी। पैसे कमाने की ऐसी मजबूरी थी कि वो एक दिन भी बिना काम किए नहीं रह सकती थीं।
स्मृति ने अपनी शादी वाले दिन में भी काम किया था। इसके अलावा बच्चे के जन्म के तीन दिन बाद भी उन्हें अपने काम पर लौटना पड़ा था।
आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि घर पर नहीं बैठ सकती थीं स्मृति
स्मृति ईरानी ने All About Eve India से बात करते हुए कहा- मैं एक दिन भी बिना काम किए नहीं रह सकती थीं। हर दिन मिलने वाली सैलरी को किसी भी कीमत पर छोड़ नहीं सकती थी। मेरी आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि मैं घर पर नहीं बैठ सकती थी।
एक गरीब आदमी के लिए पैसों से बढ़कर कुछ नहीं है। वो पैसे कमाने का एक मौका ढूंढते हैं। वो ऐसे मौकों को जाया नहीं कर सकता।

सीरियल में काम करने के लिए 1800 रुपए मिलते थे
स्मृति ईरानी ने नीलेश मिश्रा के साथ पुराने इंटरव्यू में अपने स्ट्रगल पर बात किया था। उन्होंने कहा, ‘जब मैं क्योंकि सास भी कभी बहू थी में काम कर रही थी तो मुझे सिर्फ 1800 रुपए मिलते थे। मेरे पास कोई कार नहीं थी। मेरी शादी हुई तो मेरे और जुबिन (स्मृति के पति) के पास 30 हजार रुपए थे। मुझे याद है कि मेरा मेकअप मैन मुझसे कहता था- गाड़ी तो ले लो मुझे शर्म आती है, मैं गाड़ी पर आता हूं…’
तुलसी का किरदार निभाकर घर-घर में फेमस हुईं थीं स्मृति
2000 से 2008 के बीच टेलीकास्ट हुआ एकता कपूर का शो ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ दर्शकों के बीच काफी पॉपुलर हुआ था। इसमें काम करने वाले किरदारों ने घर-घर में अपनी एक खास पहचान बना ली थी।
स्मृति ईरानी ने इस सीरियल में विरानी परिवार की आदर्श बहू तुलसी का किरदार निभाया था और वे इसी नाम से आज भी लोकप्रिय हैं। इसके अलावा रोनित रॉय के किरदार मिहिर विरानी को भी दर्शकों ने खूब पसंद किया था।

सीरियल का पहला एपिसोड 3 जुलाई 2000 को जबकि फाइनल एपिसोड 6 नवंबर 2008 को टेलीकास्ट हुआ था।
इसी शो की बदौलत राजनीति के शीर्ष पर पहुंची
इसी सीरियल के बदौलत स्मृति को पहचान मिली और उन्होंने इस पहचान को भुनाते हुए पॉलिटिक्स जॉइन कर लिया। आज वो देश की सबसे ताकतवर मंत्रियों में से एक हैं। उन्होंने अमेठी से राहुल गांधी तक को मात दे दी थी। आज वो मोदी कैबिनेट में महिला और बाल विकास मंत्रालय देख रही हैं। इसके अलावा वो पहली नॉन मुस्लिम हैं जिन्हें अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय मिला हुआ है।