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What experts say about the tempting trick of despair sadfishing nav

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What experts say about the tempting trick of despair sadfishing nav

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Sadfishing in social media trend : आजकल के लाइफस्टाइल में जितना टाइम लोग सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर देते, उतना अगर अपनी असल जिंदगी और अपनों को दें, तो लाइफ की आधी प्रॉब्लम्स वैसे ही दूर हो जाएगी, लेकिन सोशल साइट्स पर अटेंशन पाने के लिए लोग बेतरतीब तरकीबें अपनाने लगे हैं. इसी कड़ी में आजकल सैडफिशिंग (Sadfishing) का चलन तेजी से बढ़ रहा है. सैडफिशिंग सहानुभूति हासिल करने का एक ऑनलाइन ट्रेंड है. इसमें व्यक्ति सहानुभूति हासिल करने के लिए अपनी प्रॉब्लम्स को बढ़ा चढ़ाकर पेश करता है. हिंदुस्तान अखबार में छपी न्यूज रिपोर्ट में इस बात की पड़ताल की गई है कि इस तरह का कंटेंट और ट्रेंड क्या सिर्फ चर्चा में रहने का नुस्खा हैं या फिर ये किसी बड़ी समस्या का संकेत है?

सैडफिशिंग क्या है

सैडफिशिंग कोई नया शब्द नहीं है, पहली बार ब्रिटिश मॉडल रेबेका रीड (Rebecca Reed) ने इसका इस्तेमाल किया था. उनके शब्दों में सैडफिशिंग का मतलब है, एक ऐसी संवेदनशील (Sensitive) पोस्ट लिखना, जिसके जरिए लोग दूसरों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करते हैं. लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि तनाव या डिप्रेशन जैसे मुद्दों पर चर्चा को भी सैडफिशिंग करार दे दिया जाता है. वहीं कई मामले ऐसे भी सामने आते हैं जहां लोग बिना सोचे समझे अपनी पर्सनल लाइफ के बारे में लिख देते हैं और फिर दूसरे उसमें मिर्च-मसाला लगाते रहते हैं.

जरूरत पर साथ नहीं मिलने से बढ़ता है तनाव 
हताशा से जूझ रहे लोगों पर सैडफिशिंग का आरोप लगता है, तो वे और ज्यादा तनाव में आ जाते हैं. जिस वक्त उन्हें सबसे ज्यादा मदद की जरूरत होती है, उन्हें अपनों का साथ नहीं मिलता है और वो हाशिए पर चले जाते हैं. ऐसा भी हो सकता है कि सैडफिशिंग करने वाले असल में किसी समस्या से घिरे हों. हिस्ट्रीओनिक पर्सनैलिटी डिसऑडर (Histrionic Personality Disorder) में भी लोग ऐसा ही करते हैं. ऐसे लोग तारीफ पाने के लिए कई तरह के नाटक करने से भी नहीं कतराते हैं, लेकिन जब उन्हें सहानुभूति नहीं मिलती है तो वो तनाव में चले जाते हैं.

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किशोर होते है ज्यादा शिकार
सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताने वाले किशोर और युवा कई बार अपने पर्सनल एक्सपीरियंस को भी शेयर कर देते हैं, जो कि आगे चलकर उनके लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है. ऐसे में पेरेंट्स की जिम्मेदारी बढ़ जाती है. उन्हें सतर्क रहना चाहिए. क्योंकि लोगों की बिगड़ती मेंटल हेल्थ के बारे में पता चलता है. अगर किसी में तनाव या डिप्रेशन के लक्षण लग रहे हों तो धैर्यपूर्ण तरीके से बातचीत करके समस्या को सुना जाना चाहिए. जरूरत लगे तो काउंसलर की सलाह लें.

पब्लिक फोरम पर न हो बातें
इमोशन्नल डिटॉक्स फेसिलिटेटर (Emotional Detox Facilitator ) गीता बुद्धिराजा (Geeta Budhiraja) के अनुसार, सैडफिशिंग करने वाले लोगों को कुछ पर्सनल प्रॉब्लम्स हो सकती है, अगर वे नार्सिसिस्ट (Narcissist) यानी आत्मकामी हैं तो उन्हें हर वक्त ध्यान आकर्षित करने की दरकार होती है. और वो सैडफिशिंग को एक टूल की तरह यूज करते हैं. जो लोग भावावेश में आकर सैडफिशिंग करते हैं उन्हें ये समझने की जरूरत है कि वे अपनी पर्सनल प्रॉब्लम्स, पर्सनल लेवल पर ही चर्चा करके हल कर सकते हैं.

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क्या कहते हैं एक्सपर्ट
मनोवैज्ञानिक (psychologist) डॉ अरूणा ब्रूटा (Dr. Aruna Bruta) बताती हैं कि बहुत से लोगों में ऐसा व्यवहार देखने को मिलता है, जिसमें वो ध्यान आकर्षित करने के लिए किसी हद तक चले जाते हैं. ऐसा हर आयु वर्ग के लोगों में देखने को मिलता है. अपने बारे में हमेशा दुखद बातें करना, बहुत ज्यादा गुस्से में रहना, अत्यंत भावुकतापूर्ण व्यवहार, खुशी ना मनाना ये सभी चीजें इस बात की तरफ इशारा करती हैं कि घर का वातावरण सही नहीं है. ऐसे मनोभाव से गुजर रहे लोग किसी भी कीमत पर लोगों का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं. आमतौर पर सहानुभूति मिल जाने पर ऐसे लोग नॉर्मल व्यवहार करने लगते हैं लेकिन कुछ स्थितियों में ये सब डिप्रेशन की शुरुआत भी हो सकती है. ऐसे संकेतों को पहचानना जरूरी है.

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