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World food day 80 percent parents want to necessary packaged food labeling

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World food day 80 percent parents want to necessary packaged food labeling

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नई दिल्ली. विश्व खाद्य दिवस (World Food Day) के मद्देनजर पैकेटबंद खाद्य उत्पादों (Packaged Food Products) पर फ्रंट ऑफ पैक लेबल (FOPL) व्यवस्था की अनिवार्य चेतावनी को लेकर लोगों की राय लेने के ल‍िए ऑनलाइन सर्वे क‍िया गया.

सर्वे में खुलासा हुआ है क‍ि 80 फीसदी पैरेंट्स चाहते हैं क‍ि पैकेटबंद खाद्य पदार्थों पर एफओपीएल व्यवस्था की जानी चाह‍िए. इससे पैरेंट्स को फूड पैकेट्स में वसा, नमक और चीनी की मात्रा की स्‍पष्‍ट जानकारी प्राप्‍त हो सकेगी. इसको प्रमुखता से प्रदर्शित करना फूड प्रोसेसिंग कंपनियों के लिए अनिवार्य क‍िए जाने की बेहद जरूरत महसूस की जा रही है.

इस बीच देखा जाए तो बच्चों में बढ़ते मोटापे और उसकी वजह से वयस्क होने पर उनमें गैर संक्रामक बीमारियों (NCD) जोख‍िम तेजी से बढ़ रहा है. इससे भारतीय माता-प‍िता बेहद चिंतित हैं. इसको लेकर अब वह चाहते हैं क‍ि प्रोसेस्ड (प्रसंस्कृत) खाद्य पदार्थों के नियंत्रण के लिए सरकार द्वारा कड़े नियम बनाए जाने चाह‍िएं. इसको लेकर इंस्टीट्यूट ऑफ गवर्नेंस, पॉलिसी एंड पॉलिटिक्स (IGPP) की ओर कराया गया ताजा ऑनलाइन सर्वे इस बात को और बल दे रहा है.

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इस राष्ट्रव्यापी सर्वे में करीब 80 फीसदी माता-पिता ने इस बात पर सहमति जताई कि पैकेटबंद खाद्य उत्पादों पर वसा, नमक और चीनी के स्तर को प्रमुखता से प्रदर्शित करना फूड प्रोसेसिंग कंपनियों के लिए अनिवार्य किया जाना चाहिए. यह ऑनलाइन सर्वे ‘खाद्य आदतों/तत्वों और गैर संक्रामक रोगों/हृदय रोगों के बीच संबंध के बारे में लोगों की जागरूकता’ विषय पर क‍िया गया.

सर्वे का प्रमुख निष्कर्ष यह भी है कि अभिभावकों में वसा, नमक और चीनी के अत्यधिक सेवन के स्वास्थ्य पर होने वाले नुकसान के बारे में काफी जागरूकता आ रही है. लोग इस बात को समझने लगे हैं कि डायबिटीज और हाई ब्लड शुगर जैसी तेजी से बढ़ रही गैर संक्रामक बीमारियों (NCD) और हृदय रोगों को बढ़ाने में इस तरह के खाद्य उत्पादों का महत्वपूर्ण योगदान है. आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं.

सालाना हार्ट अटैक से होती है 17 लोग की मौत
आंकड़ों की माने तो साल 2017 के ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रत्येक वर्ष 17 लाख लोग हृदय रोग की वजह से मरते हैं. इसके अलावा, भारत में समय से पहले होने वाली मृत्यु में 20 वर्ष में 59 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इस कारण से समय पूर्व होने वाली मौतों का आंकड़ा वर्ष 1990 में 2.32 करोड़ था जो वर्ष 2010 में बढ़कर 3.7 करोड़ हो गया. इसके बावजूद, रोजाना के हमारे खाने में चीनी, नमक और अनसैचुरेटेड फैट (असंतृप्त वसा) की खपत का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है. अरबों डॉलर के प्रसंस्कृत खाद्य उद्योग द्वारा हमारे आहार को नियंत्रित किया जा रहा है और इस तरह के अस्वस्थकर खाद्य पदार्थों को बढ़ावा दिया जा रहा है.

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बाजार में पैकेज्ड जंक फूड प्रॉडक्ट की संख्या बढ़ती जा रही
सर्वेक्षण के प्रमुख निष्कर्षों की बात करें तो 80% अभिभावक में से करीब 60% माता-पिता ने इस बात पर भी चिंता जताई है कि बाजार में पैकेज्ड जंक फूड प्रॉडक्ट की संख्या बढ़ती जा रही है जिनकी मार्केटिंग आक्रामक और अनियंत्रित तरीके से हो रही है.

वहीं, 77% ने माना कि नमक, चीनी और वसा जैसे हानिकारक तत्वों से संबंधित जानकारी प्रदर्शित करना अगर सरकार द्वारा अनिवार्य कर दिया जाए तथा उन्हें सरल और आसान तरीके से खाद्य उत्पादों पर प्रदर्शित किया जाए तो लोग स्वस्थ विकल्प अपनाने के लिए प्रेरित होंगे.

ऐसे खान-पान से भारत जल्द बन जाएगा डायबिटीज और मोटापे की राजधानी
एम्स, जोधपुर के एंडोक्रोनोलॉजी विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. मधुकर मित्तल ने सर्वेक्षण के नतीजों के आधार पर कहा क‍ि वसा, चीनी और नमक का ज्यादा मात्रा में सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. ज्यादातर पैकेटबंद खाद्य पदार्थों में अतिरिक्त कैलोरी होती है, जिसे शून्य कैलोरी भी कहा जाता है क्योंकि उनमें पोषक तत्वों, विटामिन और नेचुरल फाइबर की कमी होती है. उनसे वजन बढ़ता है और हाई ब्लड शुगर होता है. भारत पहले से अस्वस्थकर आहार के विनाशकारी प्रभाव का सामना कर रहा है. अगर इसी तरह का खान-पान जारी रहा तो भारत जल्दी ही डायबिटीज और मोटापे की राजधानी बन जाएगा.

भारत में तेजी से बढ़ रही है बच्चों में मोटापे की समस्या
इसी तरह की चिंता जताते हुए सामुदायिक बालरोग विशेषज्ञ और न्यूट्रिशन एडवोकेसी इन पब्लिक इंट्रेस्ट (एनएपीआई) की सदस्य डॉ. वंदना प्रसाद ने कहा क‍ि भारत में बच्चों के मोटापे की समस्या तेजी से बढ़ रही है जिसकी वजह से वे वयस्क होने पर प्राणघातक बीमारियों का शिकार बनते हैं और ऐसे में आई यह रिपोर्ट स्वागतयोग्य है. हालांकि इस सर्वेक्षण मुख्य रूप से शहरी मध्य वर्ग में करवाया गया है, लेकिन जंक फूड का दखल सुदूर गांवों तक हो गया है.

आईजीपीपी के निदेशक मनीष तिवारी का कहना है क‍ि सर्वेक्षण के परिणाम स्पष्ट दर्शाते हैं कि एचएफएसएस (ज्यादा वसा, नमक और चीनी) वाले पैकेज्ड फूड प्रॉडक्ट की आसान उपलब्धता माता-पिता की चिंता बढ़ा रही है.

इनकी वजह से गैर संक्रामक बीमारियां (एनसीडी) बढ़ रही हैं जिसे मूक हत्यारा (साइलेंट किलर) भी कहा जाता है. पैकेटबंद खाद्य उत्पादों पर आसानी से समझने योग्य, पठनीय और स्वीकार्य लेबल से लोगों को हेल्दी प्रॉडक्ट खरीदने में सुविधा होगी. सर्वेक्षण की ड‍िटेल र‍िपोर्ट का अवलोकन नीचे द‍िए  https://drive.google.com/file/d/16HbrNfG0uxWJRxhUTGV7Bz0bJhpJohwE/view?usp=sharing ल‍िंंक पर क्‍ल‍िक करके क‍िया जा सकता है.

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