हाइलाइट्स
भारत में सुपारी का उपयोग धार्मिक कार्यों में किया जाता है.
सुपारी से एनर्जी लेवल बढ़ने के साथ नर्वस सिस्टम बेहतर होता है.
ज्यादा सुपारी खाने से बीपी बढ़ने के साथ एलर्जी पैदा हो सकती है.
भारत सहित कई देशों में सुपारी चबाने का चलन हजारों वर्षों से जारी है. आयुर्वेद कहता है कि सुपारी चबाने से दांत व मसूड़े, स्वस्थ रहते हैं, पाचन सिस्टम दुरुस्त रहता है और एकाग्रता भी बढ़ती है, जबकि खानपान से जुड़ी एक अन्य धारा इसे लत मानती है और कहती है कि सुपारी चबाने से पैदा होने वाले हल्के उत्साह की अनुभूति ही सुपारी को लत की श्रेणी में ले जाती है. इसके बावजूद सुपारी को सामाजिक स्वीकार्यता मिली हुई है और इसका प्रचलन सभी वर्गों में हैं. धार्मिक विश्वास से भी जुड़ी हुई है सुपारी.
इसलिए लोग सुपारी से ‘अपनापन’ जोड़ते हैं
सुपारी (Betel Nut या Areca Nut) का चलन और लोकप्रियता दक्षिण-एशियाई देशों में वर्षों से है. आयुर्वेद ने इसे गुणी-औषधि करार दिया है तो समाजशास्त्र कहता है कि चार कारक सुपारी की वर्षों से ‘अपना’ बनाए हुए हैं. इसे सामाजिक स्वीकार्यता मिली हुई है, इसलिए सभी वर्ग और उम्र के लोग इसका सेवन करते हैं. सुपारी की एशियाई संस्कृति में लंबे समय से जड़ें हैं तो यह धार्मिक विश्वास से भी जुड़ी हुई है. सुपारी को हिंदू धर्म में एक दिव्य व शुभ घटक माना जाता है और धार्मिक समारोह, पूजा, हवन, मूर्ति पूजा के दौरान इसकी उपस्थिति आवश्यक है. इसे भगवान के भोजन का एक तत्व भी माना जाता है और मान्यता है कि धार्मिक कृत्यों में इसके उपयोग से भगवान का आशीर्वाद मिलता है. भव-बाधा दूर करने के उपायों में भी सुपारी काम आती है तो विवाह व सामाजिक समारोह में भी इसे मान्यता मिली हुई है.
औषधीय गुण तो हैं, लेकिन लत भी बन सकती है
इसकी स्वीकार्यता का तीसरा कारण यह है कि सुपारी को स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी बताया गया है, क्योंकि आयुर्वेदाचार्य मानते हैं कि इसमें औषधीय गुण है. लेकिन यह भी कहा जाता है कि सुपारी चबाना एक लत है, इसलिए प्राचीन काल से इसका उपयोग हो रहा है. विश्वकोष ब्रिटेनिका (Britannica) के अनुसार निकोटीन, शराब और कैफीन के बाद सुपारी दुनिया में चौथी सबसे आम मनो-सक्रिय दवा (Common Psychoactive Drug) है. विश्वकोष यह भी कहता है कि सुपारी चबाना लत है. यह निकोटीन के समान एक उत्तेजक तत्व छोड़ती है, जिससे हल्के उत्साह की अनुभूति पैदा होती है. इसके बावजूद सुपारी दक्षिणी एशिया की कई सांस्कृतिक परंपराओं में महत्वपूर्ण है.
माना जाता है कि करीब 2 हजार साल से सुपारी उगाई और चबाई जा रही है. Image-Canva
भारत सहित सुपारी मलेशिया, कंबोडिया, म्यांमार, थाईलैंड व वियतनाम में लोककथाओं, अनुष्ठानों, समारोहों और दैनिक जीवन के सामाजिक मेलजोल का एक अभिन्न उसी तरह बनी हुई है, जैसे पश्चिम के लोग एकसाथ बैठकर कॉफी या बियर पीते हैं.
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करीब 2 हजार से साल से चबाई जा रही है सुपारी
सुपारी के इतिहास को लेकर प्रामाणिक साक्ष्य बहुत क्लियर नहीं है, लेकिन माना जाता है कि करीब 2 हजार साल से सुपारी उगाई और चबाई जा रही है. इसका पहला पौधा इंडोनेशियाई द्वीपसमूह में पैदा हुआ, उसके बाद यह भारतीय उपमहाद्वीप, श्रीलंका और पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया, मलेशिया में फैल गया. संभावना जताई जाती है कि गुप्त काल के दौरान सुपारी ने भारत में प्रवेश किया, जिसके बाद यह इस देश की सामाजिक व धार्मिक मान्यताओं में दिखने लगी.
एक ऐतिहासिक दावा यह भी किया जाता है कि पान-सुपारी हजारों सालों से चबाई जा रही है और फिलीपींस स्थित डुयोंग गुफा में पाए गए 3,000 ईसा पूर्व के कंकाल सुपारी चबाने का प्रमाण देते हैं. विशेष बात यह है कि पश्चिमी देशों ने पान-सुपारी चबाने को अलग ही दृष्टिकोण से देखा और इसे कभी भी तरजीह नहीं दी. उन्होंने इसे ‘अस्वच्छ, बदसूरत और घृणित’ आदत कहा.
दर्द को रोकती है, पाचन सिस्टम को सुधारती है
आधुनिक चिकित्सा क्षेत्र में स्वास्थ्य के हिसाब से सुपारी का सेवन पॉजिटिव नहीं माना जाता है, इसके बावजूद यह भी सर्वविदित तथ्य है कि सुपारी में औषधिय गुण तो हैं. आयुर्वेदाचाय सुपारी को एक जड़ी-बूटी मानते हैं और कहते हैं कि इसके इस्तेमाल से रोगों को ठीक करने में मदद मिलती है. देश के जाने-माने योग गुरु व आयुर्वेदाचार्य श्री बालकृष्ण के अलावा मुंबई यूनिवर्सिटी के पूर्व डीन व वैद्यराज दीनानाथ उपाध्याय के अनुसार सुपारी में दर्द-निवारक (Analgesic) तत्व मौजूद हैं, जिसके चलते यह शरीर दर्द में राहत देती है और दांतों व मसूड़ों को संक्रमण से बचाती है. इसको चबाने से पाचन सिस्टम दुरुस्त होता है और कब्ज से राहत मिलती है. यह उल्टी (Vomiting) को रोकती है और अगर इसे पीसकर लगाने से स्किन के रोग भी दूर किए जा सकते हैं. सुपारी व अन्य जड़ी-बूटियों को मिलाकर बनाई गई दवा से गंजेपन से मुक्ति पाई जा सकती है.
यूरिन संबंधी परेशानी है तो सुपारी को मिलाकर बनाया गया काढ़ा बेहतर लाभ पहुंचाता है. Image-Canva
एकाग्रता और ऊर्जा का स्तर बढ़ा देती है
उनके अनुसार अध्ययन बताते हैं कि सुपारी चबाने से एकाग्रता का स्तर बढ़ता है और नर्वस सिस्टम दुरुस्त रहता है. यह शरीर मे ऊर्जा को भी बढ़ाती है. इसका सेवन लूज-मोशन में भी लाभकारी है. विशेष बात यह है कि सुपारी शरीर में डायरिया की संभावना को कम करती है. अगर यूरिन संबंधी परेशानी है तो सुपारी को मिलाकर बनाया गया काढ़ा बेहतर लाभ पहुंचाता है. इसको चबाने से मुंह में अत्यधिक लार बनती है, जो मुंह का सूखापन तो रोकती ही है, साथ ही पाचक क्षमता बढ़ाती है. इसमें पाए जाने वाले कुछ खास तत्व मांसपेशियों को भी मजबूत करने के काम आते हैं.
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अधिक सेवन कई समस्याएं पैदा कर सकता है
बताते हैं कि इन सब विशेषताओं के बावजूद सुपारी के कुछ निगेटिव प्रभाव भी हैं. नियमित सेवन करने से इसकी लत लग जाती है, जो आगे चलकर बड़ी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को पैदा कर सकती है. इसका अधिक सेवन दांतों व मसूड़ों के लिए दिक्कत पैदा कर सकता है. यह ब्लड प्रेशर को भी डांवाडोल कर सकती है और एलर्जी भी पैदा कर देगी. इसके ज्यादा सेवन से अधिक प्यास लगती है और पसीना भी बहुत आता है.
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FIRST PUBLISHED : October 05, 2022, 07:02 IST