Home Entertainment सिनेमा review ; Yeh Kali Kali Aankhen is the story of the bloody struggle of love, power and forced love. | प्यार, पावर और जबरिया इश्क के खूनी संघर्ष की कहानी है ‘ये काली काली आंखें’

review ; Yeh Kali Kali Aankhen is the story of the bloody struggle of love, power and forced love. | प्यार, पावर और जबरिया इश्क के खूनी संघर्ष की कहानी है ‘ये काली काली आंखें’

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review ; Yeh Kali Kali Aankhen is the story of the bloody struggle of love, power and forced love. | प्यार, पावर और जबरिया इश्क के खूनी संघर्ष की कहानी है ‘ये काली काली आंखें’

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11 मिनट पहले

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इस वेब सीरीज की कहानी में दो सच्चे प्यार करने वाले युवा विक्रांत चौहान और शिखा की राहों में अंतहीन चुनौतियां हैं। इसका कारण है उनके प्यार को पूर्वा नामक तीसरी युवती की नजर लगी हुई है, जिसके पिता अखिराज अवस्थी बहुत बड़े लीडर हैं। विक्रांत के पिता अखिराज के एकाउंटेंट हैं। विक्रांत का बचपन अखिराज का एहसानमंद है। साथ ही वह पूर्वा के बचपन का इकतरफा प्यार है।

अखिराज दबंग हैं, अपने और अपने परिवार की ख्वाहिशों के आगे उसे कभी कुछ मंजूर नहीं होता। नेताओं के पास कानून को तोड़ने मरोड़ने की असीमित ताकत होती है। वह हैसियत अखिराज अवस्थी की भी है। ऐसे में एक आम परिवार से ताल्लुक रखने वाला विक्रांत अखिराज के ऐसे जटिल चंगुल से बाहर निकल अपने प्यार को हासिल कर पाता है कि नहीं, वह इस सीरीज के आठ एपिसोड में आपको दिखेगा।

पॉलिटिकल ठसक मेकर्स ने बखूबी दिखाई है
इसे सिद्धार्थ सेनगुप्ता, रोहित जुगराज, अंकिता मैथी और वरुण वडोला ने मिलकर लिखा और डायरेक्ट सिद्धार्थ सेनगुप्ता ने किया है। उन्होंने अखिराज अवस्थी और पूर्वा को अपराजेय सा रखा है। विक्रांत या शिखा जब जब उनके अरमानों पर पानी फेरने की कोशिश करना चाहते हैं, अखिराज और पूर्वा के गुर्गे उनका जीवन नर्क समान बना देते हैं। इस क्रम में मेकर्स ने विलेन पक्ष को कुछ ज्यादा ही ताकतवर दिखाया है।

हालांकि हिंदुस्तान के ज्यादातर हिंदी पट्टी के इलाकों में पॉलिटिकल फैमिली के पास इतनी प्रचंड ताकत होती है। यह विडंबना ही है कि लोकतंत्र में असल पावर लोक नहीं शासन करने वाले तंत्र के पास है। इस पहलू को मेकर्स ने बेहद मजबूती, बेबाकी और बगैर अपोलॉजेटिक हुए पेश किया है।

श्वेता त्रिपाठी ने बेहतरीन काम किया है
मेकर्स के इस मकसद को जीवंत करने में ताहिर राज भसीन, श्वेता त्रिपाठी, आंचल सिंह, सौरभ शुक्ला, बृजेंद्र काला ने बखूबी जिम्मेदारी निभाई है। ताहिर ने विक्रांत और श्वेता त्रिपाठी ने शिखा की लाचारी बड़े ही अच्छे तरीके से रखी है। ये श्वेता वही हैं, जिन्होंने ‘मिर्जापुर’ में जरूरत पड़ने पर बदले की आग में जल रही गोलू की इंटेनसिटी को असरदार तरीके से रखा था। यहां बतौर शिखा वह गोलू जैसी सिचुएशन में नहीं है। अखिराज के गुर्गों के आगे वह बेबस है। अपनी खुशी के लिए अखिराज खून की होली खेलने से भी पीछे नहीं हटता।

अरुणोदय सिंह रोल में फिट बैठते हैं
विक्रांत की भूमिका को ताहिर ने जिया है। ताकतवर दुश्मनों के आगे नतमस्तक युवक सेल्फ डिफेंस में क्या सही और गलतियां कर सकता है, वह सब उन्होंने बेहद रियलिस्टिक रखा है। पूर्वा के रोल में आंचल सिंह और अखिराज अवस्थी के किरदार में सौरभ शुक्ला ने ताकतवर इंसानों की हनक, सनक, नियत, फितरत को असरदार बनाया है। अखिराज के हेंचमैन बने सूर्य शर्मा और विक्रांत के जिगरी दोस्त गोल्डन बने अनंत जोशी भी एक्टिंग वाइज सभी एपिसोड्स में ठसक के साथ अपनी प्रजेंस दिखाई है।

सीरीज के आखिरी एपिसोड में अरुणोदय सिंह एक कॉन्ट्रैक्ट किलर के तौर पर एंट्री लेते हैं। किलर की बेरहमी और चालाकी में उन्होंने पर्याप्त अनुशासन लिया हुआ है। बाकी कलाकारों में अनंत जोशी, सुनीता राजवर भी ठीक हैं। विक्रांत के दोस्त गोल्डन बने अनंत जोशी रक्तरंजित वॉर की सिचुएशन में पर्याप्त ह्यूमर लाते रहते हैं।

कहानी को रबड़ की तरह खीचा गया है
कुल मिलाकर यह सीरीज कलाकारों की सधी हुई अदायगी के लिहाज से स्तरीय और एंगेजिंग हैं। लिखाई के संदर्भ में बस यह सीरीज बहुत खिंच गई है। किरदारों के ग्लोरिफिकेशन में यह फंसी और अटकी हुई रह गई है। आठ एपिसोड में विक्रांत-शिखा के दुश्मनों से सिर्फ कैट एंड माउस चेस की कभी न खत्म होने वाली गाथा चल रही है। वह एक लाइन के बाद रिपिटेटिव हो गई है। उसके चलते देखते हुए इक झुंझलाहट पैदा होने लगती है कि भई कहानी आगे भी जाएगी या चुइंगम की तरह बस खिंचती जाएगी। ग्लोरिफकेशन ‘मिर्जापुर’ में भी था, पर वहां हर किरदार के पास कहने को बहुत कुछ था। यहां हीरो हीरोइन ही पूरे एपिसोड में भाग रहे हैं। वो कहीं जीतते हुए नजर नहीं आते। यकीनन रियल लाइफ में ऐसा होता है, पर क्या रील लाइफ में ऑडिएंस वैसी बेचारगी आठ एपिसोड तक देखती रहेगी, यह देखना दिलचस्प होगा।

बहरहाल, जिस नोट पर यह सीरीज खत्म होती है, उससे साफ जाहिर है कि कहानी अभी बाकी है। दूसरे सीजन में शायद हीरो-हीरोइन की वापसी टिपिकल विजेताओं की तरह शायद हो?

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