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प्रोटीन से भरपूर सोयाबीन की बड़ी है लो फैट फूड, सदियों से भोजन में हो रहा इस्तेमाल, जानें इसका रोचक इतिहास

हाइलाइट्स

सोयाबीन दिल के रोग व मधुमेह का जोखिम कम कर सकता है.
सोयाबीन में 17 प्रतिशत तेल और 63 प्रतिशत भोजन होता है.
नॉनवेज के पोषक तत्वों का बेहतरीन विकल्प है सोया बड़ी.

फलियों (Beans) में जैसे लोबिया, ग्वार, सेम आदि हैं, उसी तरह सोया भी है, लेकिन यह स्वाद और गुणों में इनसे बेहतर है. अगर भोजन में नॉनवेज (मांस) की सभी अच्छाइयों को उसके बिना नुकसान से पाना चाहते हैं तो सोयाबीन की बड़ी (Soyabean Chunks) से बेहतर कोई आहार नहीं है. इसमें नॉनवेज जितना प्रोटीन होता है, लेकिन फेट (वसा) न के बराबर, इसलिए इसे शाकाहारी मांस (Veg-Meat) भी कहा जाता है. भोजन के रूप में इसका सेवन शुगर, दिल के रोगों का जोखिम कम करता है. दुनिया में हजारों सालों से भोजन के रूप में इसका प्रयोग किया जा रहा है.

कई रूप हैं सोयाबीन के

सोयाबीन एक ऐसी फली है, जिसके कई रूप हैं. लोबिया, ग्वार आदि की तरह तो यह खाई ही जाती है, साथ ही बड़ियों के रूप में इसका गजब इस्तेमाल है. सोया से सॉस भी बनता है तो स्वादिष्ट टोफू (एक तरह का पनीर) भी बनाया जा सकता है. ऑयल भी इससे बनता ही है. यानी दुनिया की एक ऐसी सब्जी है, जिसका कई तरह से उपयोग किया जाता है. हैरानी की बात यह है कि जिस तरह यह मनुष्य के भोजन के रूप में इसका उपयोग होता है, उसी तरह मवेशियों जैसे मुर्गियों, टर्की, सूअरों को हर साल लाखों टन सोयाबीन भोजन युक्त आहार खिलाया जाता है. यह परंपरा भी काफी पुरानी है. अब सोयाबीन की बड़ियां (Chunks) सबसे अधिक खाई जाती हैं. सोयाबीन की बड़ियों का पुलाव तो सारे जहां में मशहूर है. इसकी सॉस कई मुल्कों के देसी भोजन और अनेकों कॉन्टिनेंटल डिश में गजब का स्वाद उभारती है.

soya badi

सोयाबीन का इस्तेमाल मवेशियों के खाने के तौर पर भी किया जाता है.

चीन से पैदा होकर पूरी दुनिया में विस्तार हुआ

पहले हम सोयाबीन के इतिहास की बातें करें. भोजन से जुड़ी इतिहास की पुस्तकें मानती हैं कि इसकी सबसे पहले खेती चीन में हुई. सब्जियों, फलों के उत्पत्ति स्थलों पर प्रामाणिक खोज करने वाली अमेरिकी-भारतीय वनस्पति विज्ञानी सुषमा नैथानी के अनुसार सोयाबीन का उत्पत्ति स्थल चीन व दक्षिणी पूर्वी एशिया है, जिसमें चीन, ताइवान के अलावा कोरिया, थाइलैंड, मलेशिया और दक्षिणपूर्वी एशिया के अन्य देश आते हैं. अमेरिका स्थित North Carolina Soybean Producers Association का मानना है कि ईसा पूर्व 11वी शताब्दी में चीन में इसकी खेती हो रही थी. इसके अलावा जापान और कोरिया में हजारों वर्षों से भोजन और दवाओं के एक घटक के रूप में सोयाबीन के उपयोग की जानकारी है.

अमेरिका में सोयाबीन का पहला जिक्र न्यू जर्सी के रटगर्स विश्वविद्यालय (Rutgers University) के कृषि कॉलेज की 1879 की एक रिपोर्ट में हुआ है. उसके बाद अमेरिकी इसके दीवाने हो गए. आज दुनिया में सबसे अधिक सोयाबीन अमेरिका में उगाई जाती है, उसके बाद ब्राजील, अर्जेंटीना, चीन और भारत हैं. वैसे हजारों वर्ष पूर्व लिखे गए भारतीय आयुर्वेदिक ग्रंथों में सोयाबीन की सीधे तौर पर जानकारी नहीं है, लेकिन इन ग्रंथों में बीन्स के रूप में लोबिया, राजमा, सेम आदि का वर्णन अवश्य है.

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नॉनवेज का है सॉलिड विकल्प

सवाल यह है कि सोया चंक्स को नॉनवेज का सॉलिड विकल्प क्यों माना जाता है. आहार विज्ञानी तो इसे नॉनवेज से भी बेहतर मानते हैं, क्योंकि इसमें नॉनवेज की तरह भरपूर प्रोटीन तो होता है, लेकिन नॉनवेज की तरह वसा बिल्कुल नहीं होता. यही वसा यानी फेट को शरीर के लिए हानिकारक माना जाता है. एक जानकारी के अनुसार 100 ग्राम सोया चंक्स में 345 कैलोरी, प्रोटीन 52 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट 33 ग्राम, फाइबर 13 ग्राम, वसा मात्र 0.50 ग्राम, कैल्शियम 350 मिलीग्राम, आयरन 20 मिलीग्राम पाया जाता है. इसीलिए सोया चंक्स को नॉनवेज की बुराइयों को हटाकर सभी अच्छाइयों से भरा ‘शाकाहारी मांस’ माना जाता है.

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सोया चंक्स को खाकर प्रोटीन की कमी पूरी कर सकते हैं.

विशेष बात यह भी है कि यह किचन के लिए पॉकेट फ्रेंडली भी है. कह सकते हैं कि जो शाकाहारी लोग प्रोटीन की कमी से पीड़ित हैं, वे नॉनवेज किसी भी परंपरा या भावनाओं से आहत हुए बिना सोया चंक्स को खाकर प्रोटीन की कमी पूरी कर सकते हैं. कहा यह भी जाता है कि सोया चंक्स चिकन और भेड़ के बच्चे की तुलना में अतिरिक्त प्रोटीन प्रदान करता है.

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गुणों से भरपूर है सोयाबीन की बड़ियां

सोयाबीन में और भी कई गुण हैं जो कई बीमारियों का जोखिम कम करते हैं और शरीर को लाभ भी पहुंचाते हैं. विश्वकोष ब्रिटेनिका (Britannica) का कहना है कि सोयाबीन में 17 प्रतिशत तेल और 63 प्रतिशत भोजन होता है. चूंकि सोयाबीन में स्टार्च नहीं होता है, इसलिए यह मधुमेह रोगियों के लिए प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत हैं. इसका खमीर उठाकर (fermented) बनाया गया सॉस एशियाई खाना पकाने में एक सर्वव्यापी घटक है. सोयाबीन से टेम्पेह (Tempeh) पारंपरिक इंडोनेशियाई फूड व मिसो (Miso) जापानी सूप का आवश्यक तत्व भी बनाया जाता है. जानी-मानी डायटिशियन अनिता लांबा के अनुसार सोयाबीन्स को प्रोसेस कर इसका ऑयल निकालकर बचे अवयव से सोया चंक्स बनाए जाते हैं. यह आदर्श रूप से वसा रहित होते हैं. इनका कोई स्वाद नहीं होता, लेकिन सभी व्यंजनों के साथ यह अच्छी तरह मिलकर उसी स्वाद में रम जाता है, इसलिए आजकल इसे बहुत अधिक पसंद किया जाता है.

soya

सोयाबीन में 17 प्रतिशत तेल और 63 प्रतिशत भोजन होता है.

दिल के रोग व मुधमेह का जोखिम कम करता है

सोयाबीन का सेवन दिल के रोग व मधुमेह का जोखिम कर सकता है. यह बेड कोलेस्ट्रॉल के स्तर को भी कम करता है. चूंकि इसमें फेट कम है और फाइबर पर्याप्त मात्रा में है, इसलिए इसे खाकर देर तक भूख भी नहीं लगती, जिसे वजन कंट्रोल में रहता और पाचन सिस्टम भी दुरुस्त बना रहता है. यह सूजन संबंधी बीमारियों में भी लाभ पहुंचाता है. ऐसा भी माना जाता है कि इसका सेवन कैंसर के जोखिम को कर सकता है. इसके अधिक सेवन से बचना चाहिए, वरना यूरिक एसिड बढ़ने की संभावना बन जाती है. इसका अधिक सेवन होर्मोनल समस्याएं भी पैदा कर सकता है.

Tags: Food, Lifestyle

Mr.Mario
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