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Famous food Outlets In Delhi: मशहूर शायर मिर्जा ग़ालिब को कौन नहीं जानता. वह आगरे में पैदा हुए और पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान इलाके में उन्होंने पूरी जिंदगी गुजारी. आपको बताते चलें कि गालिब साहब को पीने-पिलाने का शौक था. उनके बारे में कहा जाता है कि वह दिन-भर तो शायरी लिखते, किताब पढ़ते या अपनों को खत लिखते. शाम ढलते ही वह शराब नोश फरमाते. गालिब हमेशा इंग्लिश शराब पीते थे. ओल्ड टॉम (Old Tom) और कास्टेलॉन (Castelon) उनके पसंदीदा ब्रांड थे. ग़ालिब साहब खाने के भी शौकीन थे. बुढ़ापे तक वह कबाब, शामी कबाब और दाल-गोश्त खूब खाते रहे.
ग़ालिब साहब को निजामुद्दीन इलाके में दफनाया गया है और वहीं पर उनकी मज़ार है. उनके मुरीदों को पता था कि ग़ालिब को कबाब का शौक था. इसी के चलते एक मुरीद ने सालों पहले उनकी मजार के इलाके में ग़ालिब साहब के नाम से दुकान ही खोल डाली. दुकान क्या है साहब, ऐसे कबाब दिल्ली में शायद ही आपको कहीं खाने को मिलें.
लज़ीज, मुलायम और खुशबूदार हैं इनके कबाब
निजामुद्दीन का इलाका हजरत निजामुद्दीन की दरगाह और गालिब साहब की मज़ार के तौर तो जाना ही जाता है. इस इलाके में खाने-पीने की भी एक से एक दुकानें हैं. इन दुकानों में नॉनवेज आइटमों की भरमार है और उनका स्वाद भी लाजवाब है. इन्हीं दुकानों में हजरत निजामुद्दीन मार्ग, ग़ालिब रोड (मरकजी मस्जिद) पर ‘ग़ालिब कबाब कॉर्नर’ (Ghalib Kabab Corner) नाम से एक पुरानी दुकान है. इस दुकान के कबाब इतने लज़ीज, मुलायम और खुशबूदार हैं कि आप खाते ही वाह-वाह कर उठेंगे. वैसे तो इस दुकान पर एक से एक मुगलई डिश परोसी जाती है लेकिन मटन और चिकन कबाब से ही यह दुकान खासा नाम कमा रही है. जो बंदा वाकई मुगलई कबाब खाना चाहता है, उसके लिए इससे शानदार और जानदार दुकान शाायद ही कोई और हो.
‘ग़ालिब कबाब कॉर्नर’ (Ghalib Kabab Corner) पर कबाब को बनाने से पहले गोश्त का बारीक कीमा तैयार किया जाता है.
गोश्त का बारीक कीमा और मसाले कबाब में स्वाद भरते हैं
दोपहर 12 बजे आप इस दुकान पर पहुंचेंगे तो आपको धुएं में एक अलग ही गंध महसूस होगी. असल में यह गंध कोयले के तंदूर (सिगड़ीनुमा अंगीठी) पर सिंक रहे कबाब की है. जो देर रात तक भुनते रहते हैं. इस दुकान को चलाने वाले ऑनर कुरेशी (Butcher) खानदान से हैं, इसलिए उन्हें इस बात की समझ है कि गोश्त के किस हिस्से (Portion) से बेहतर, लजीज और मुलायम कबाब बनाए जा सकते हैं. बस, इस परिवार की यही खासियत लोगों को इस दुकान के कबाब खाने के लिए ललचाती है. इन कबाब को बनाने से पहले गोश्त का बारीक कीमा तैयार किया जाता है. फिर उसमें संतुलित मात्रा में गरम मसाला मिलाया जाता है. इसके अलावा दुकान वालों के स्पेशल और सीक्रेट मसाले व कारीगरी इसके स्वाद को बढ़ाती है.
‘ग़ालिब कबाब कॉर्नर’ (Ghalib Kabab Corner) पर कबाब को बनाने से पहले गोश्त का बारीक कीमा तैयार किया जाता है.
कोयले की आंच पर मंद-मंद सिंकते कबाब खूब खुशबू उड़ाते हैं
आप कबाब का ऑर्डर दीजिए. आपके सामने ही लोहे की सींक पर कबाब लपेटे जाते हैं, फिर उन्हें तंदूर की हल्की-तेज आंच में सलीके से सेंका जाता है. चारों तरफ उड़ रहा धुआं और उसकी गंध आपकी भूख बढ़ाती रहेगी. इन कबाब को प्याज और हरी चटनी के साथ सर्व किया जाता है. खाते ही यह कबाब मुंह में घुलने लगते हैं. उनकी गंध नाक से निकलती महससू होती है. आप ग़ालिब साहब के मुरीद हैं तो दुकान के नाम, कबाब, उनका स्वाद आपको उनकी याद दिला सकते हैं. चार मटन कबाब 170 रुपये के हैं और चिकन की प्लेट 150 रुपये में आपको मस्त कर देगी.
साल 1959 में कुरेशी परिवार ने शुरू किया कबाब का काम
शुरुआती दौर में सालों तक इस दुकान पर कबाब ही बिकते रहे. बाद में परिवार के लोगों ने इसकी वैरायटी बढ़ाई. इनमें मटन टिक्का, चिकन टिक्का, मटन कोरमा, नाहरी, बिरयानी आदि ढेरों आइटम शामिल हैं. कबाब खाने के बाद आप इनको भी आजमा सकते हैं. एकदम गरमा-गरम, ताजा और मुगलई स्वाद से भरपूर यह डिश आपके तन-मन को तृप्त कर देंगे. हम आपको बता ही चुके हैं कि यह परिवार कुरेशी खानदान है. सालों पहले तक इस खानदान के लोग इलाके में गोश्त बेचते रहे. वर्ष 1959 में मोहम्मद हनीफ कुरेशी ने कबाब बनाने और बेचने का काम शुरू किया. महकते और लजीज कबाब ने लोगों का दिल जीत लिया और पूरी दिल्ली में कुरेशी (बड़े मियां) मशहूर होने लगे.
कबाब फेस्टिवल में नाम कमा चुके हैं इनके कबाब
उनके बेटे मोहम्मद नासिर कुरेशी जब इस दुकान से जुड़े तो उन्होंने आइटमों में इजाफा किया. आज उनके साथ उनके बेटे अनस कुरेशी व ओवेश कुरेशी भी जुड़ गए हैं. मटन-चिकन को काटने, उसमें मसाला लगाने से लेकर पकाकर उन्हें ग्राहक तक पहुंचाने का काम सब मिलकर करते हैं. इनके कबाब मौर्या होटल में आयोजित कबाब फेस्टिवल में जीत हासिल कर चुके हैं. यह दुकान इतनी नाम कमा रही हे कि साउथ दिल्ली, दिल्ली के पॉश इलाकों के अलावा जामा मस्जिद, ओखला जैसे इलाके के लोग भी इस दुकान पर आते हैं. दोपहर 12 बजे इनका काम शुरू हो जाता है और रात 12 बजे तक आप यहां नॉनवेज का लुत्फ ले सकते हैं. कोई अवकाश नहीं है.
नजदीकी मेट्रो स्टेशन: जेएलएन स्टेडियम
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